दिल्ली की बारिश
दिल्ली की बारिश मानो लौटरी, दिल्ली तक आते-आते बादलों का हाथ तंग हो जाता है, सो सोच समझ बरसते हैं। खैर दिल्ली में हर काम में सोचा जयादा जाता है, किया कम जाता है। चाहे वो नेता हों या जनता। बादलो को यह भाषा दिल्ली में घुसते ही समझ आ जाती है। मगर कुछ भी हो बच्चों का तो दिन बन गया। स्रोत हिन्दुस्तान टाईम्स
5 comments:
विपुल जी बच्चो को छतरी ठमा कर आप फ़ोटो के चक्कर मे लगे रहे और बच्चो ने छतरी तोड दी,अब तो ये सोचो घर जाकर भाभीजी को क्या जवाब दोगे..? :)
बढ़िया है ।
घुघूती बासूती
काफी प्यारा चित्र है ! बारिश बच्चों में छिपी भावनायें बाहर ले आता है -- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
चित्र बहुत ही अच्छा है
:-)
बढ़िया लिखा है आपने!!
और चित्र भी अच्छा है!
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